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कबीर के दोहे |
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
कहे कबीर गुरु पाइये, मन ही के परतीत..!!
अर्थ : इस दोहे में कबीर यह समझाना चाहते है कि आपके मन की शक्ति ही आपका जीत या हार सुनिश्चित करती है। यदि आप मन से उत्साह पूर्वक जीत का अनुभव करते हैं, तो अवश्य ही आपकी जीत होगी। और यदि आप हृदय से गुरु की खोज करेंगे तो निश्चय हीं आपको सदगुरु मिलकर रहेंगे।
चले गया सो ना मिले, किसको पुछु बाट
मात, पिता, सुत, बंधबा, झूठा सब संघात..!!
अर्थ : जो मर कर चले गये उनसे पुनः मुलाकात संभव नहीं है, और इसके लिए आप किसी को दोस भी नहीं दे सकते है। पिता पूत्र भाई बंधु, इस संसार के सभी संबंध अल्पकालिक और झूठे है।
अति का भला ना बोलना, अति का भला ना चूप
अति का भला ना बरसना, अति का भला ना धूप..!!
अर्थ : ना तो अधिक बोलना अच्छा होता है, और ना ही अधिक चुप रहना। वैसे ही जैसे ना तो अधिक बारिश अच्छी है और ना ही अधिक धूप।
अर्थ : इस दोहे में कबीर यह शिक्षा देना चाहते हैं, कि माॅंगना मृत्यु के समान है। इस दोहे के माध्यम से कबीर लोगों को कर्मशील बनने की शिक्षा दे रहे है।
अर्थ : दुखी व्यक्ति हमेशा दुख मे मरता रहता है, और सुखी व्यक्ति हमेशा अपने सुख में जलता रहता है। पर ईश्वर का भक्त सुख-दुःख त्याग कर हमेशा आनंदित रहता है।
अर्थ : यदि आप अपने मन को शांत एंव शीतल रखते है, तो कोई भी आपका दुश्मन नहीं होगा। और अगर आप अपनी प्रतिष्ठा एंव घमंड को दूर कर देंगे, तो सारा संसार आपको प्रेम करेगा।
अर्थ : सभी मीठे वचन बोलने वालो को साधु मत समझें। क्योंकि पहले वे अपना स्वांग नौटंकी एवं कलाबाजी दिखाकर आपको आकर्सित करते है, और फिर पीछे से धोखा देकर ठगते है।
अर्थ : समुद्र मे जिस तरह असंख्य लहरें उठती है, उसी प्रकार मन में अनगिनत विचारों रूपी तरंगे उठती है। यदि आप अपने मन को सहज, सरल और शांत कर लेते है तो आपके लिए सत्य का ज्ञान संभव है।
वाको बुरा ना मानिये, और कहां से लाय..!!
अर्थ : जिसके पास जितना ज्ञान होता है जितनी बुद्धि होती है, वह उतना बता देता है। इसलिए आपको इस बात का बुरा नहीं मानना चाहिये, क्योंकि चाहकर भी वो उससे अधिक नहीं बता सकता।
कोई निन्दोई कोई बंदोई, सिंघी स्वान रु स्यार
हरख विशाद ना केहरि, कुंजर गज्जन हार..!!
अर्थ : किसी की निन्दा करने या किसी के प्रशंसा करने से ज्ञानी व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। जो शेर हांथी को मार सकता है, उसपर सियार और कुत्तों के भौंकने का कोई असर नहीं होता है।
तन को जोगी सब करै, मन को करै ना कोये
सहजये सब सिधि पाइये, जो मन जोगी होये..!!
अर्थ : शरीर के लिये योगासन सभी करते है, पर मन के लिये कोई नहीं करता। यदि कोई मन का योगी हो जाये तो उसे समस्त सिद्धियाॅं प्राप्त हो सकती है।
नागिन के तो दोये फन, नारी के फन बीस
जाका डसा ना फिर जीये, मरि है बिसबा बीस..!!
अर्थ : कबीर का कथन है कि सांप के तो केवल दो फन होते है, परन्तु स्त्री के बीस फन होते है। और यदि स्त्री एक साथ बीस लोगों को काट ले, तो बिसों के बीस लोग मर जाते है। स्त्री का काटा कोई नही बच सकता।
कबीर नारी की प्रीति से, केटे गये गरंत
केटे और जाहिंगे, नरक हसंत-हसंत..!!
अर्थ : कबीर का कथन है कि नारी के प्रेम में अनेकों लोग बरबाद हो चुके है, और अभी बहुत सारे लोग हंसते-हंसते नरक जाने वाले है।
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