Raksha Bandhan History, Quotes and Subh Muhurat 2020 : जाने रक्षा-बंधन सावन पूर्णिमा के दिन ही क्यों मनाया जाता हैं, 2020 में राखी बांधने का सुबह मुहूर्त, रक्षाबंधन बधाई संदेश, एवं राखी से जुड़े कई अन्य रोचक तथ्य..??


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रक्षाबंधन..!!


राखी जिसे रक्षाबंधन के नाम से भी जाना जाता है, पूरे भारतवर्ष में त्योहार की तरह मनाया जाता है। यह एक श्रावणी उत्सव है, जो मूलरूप से हिंदुओ तथा जैनों द्वारा मनाया जाता है। रक्षाबंधन को त्योहार के तरह मनाने की परंपरा आदिकाल से ही चली आ रही है। रक्षा-बंधन का जिक्र हमारे धर्म ग्रंथों में भी मिलता है।

इस दिन सभी बहने अपने भाइयों कि कलाई पर रक्षासूत्र (राखी) बांधती है। ऐसी धारणा है कि रक्षासूत्र उनके भाइयों की हिफाज़त करती है, तथा उनकी आयु को लंबी करती है। बहनों द्वारा भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र बांधने की परंपरा भी वैदिक काल से चली आ रही है।

Raksha bandhan shubh muhurat 2020

इस वर्ष रक्षाबंधन सोमवार, 3 अगस्त को है, तथा राखी बांधने का सुभ मुहूर्त सुबह 9.24 से लेकर 10.30, दोपहर 1.30 बजे से लेकर शाम के 7.30 तक, और रात्रि के 10.30 से 12 बजे के बीच का है।

गुरु शिष्य भी मनाते है रक्षाबंधन

बहन भाइयों के अलावा गुरु शिष्य के रिश्ते में भी रक्षाबंधन काफी प्रचलित है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर गुरु शिष्य के रिश्ते को और अधिक प्रगाढ़ बनाते है।

रक्षाबंधन का इतिहास

रक्षाबंधन की शुरुआत कब और कैसे हुई, इसे श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन ही क्यों मनाया जाता है, इसका न तो कोई साक्ष्य मौजूद है और न ही कोई इसके बारे में जानता है। हां मगर भविष्य पुराण में इसका वर्णन मिलता है कि दैविक काल में जब एक बार देवता और दानवों के बीच युद्ध हुआ तो युद्ध में दानव देवता पर हावी होने लगे। दानवों को हावी होता देख भगवान इन्द्र घबराकर बृहस्पति के पास गए, और अपनी सारी व्यथा उन्हें सुनाई। इन्द्र की पत्नी इंद्राणी भी वहां मौजूद थीं और उनकी सारी बाते सुन रही थी। भगवान इन्द्र की बाते सुनने के बाद इंद्राणी ने रेशम के धागे को मंत्रो के जाप से पवित्र करके अपने पति की कलाई पर बांध दिया। संयोगवश उस दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था।

लोगों का ऐसा विश्वास है कि उस धागे की वजह से ही इन्द्र उस लड़ाई में विजयी हुए थे। उस दिन के बाद से ही श्रावण पूर्णिमा के दिन धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है, जो देवी लक्ष्मी और राजा बलि के रक्षाबंधन से भाई बहन का त्योहार बन गया। लोगों का मानना है कि यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय होने की शक्ति प्रदान करता है।

पुरोहितों द्वारा रक्षासूत्र बांधने की परंपरा

रक्षाबंधन के दिन पुरोहितों द्वारा यजमानों को रक्षासूत्र बांधने की परंपरा भी काफी प्रचलित है। प्राचीन काल में पुरोहित राजा, क्षत्रिय और समाज के वरिष्ठजनों को श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा सूत्र बांधा करते थे। इसके पीछे यह धारणा थी कि राजा, क्षत्रिय और वरिष्ठजन समाज के लोगो एवं पुरोहितों की रक्षा करेंगे। इस परंपरा की शुरुआत भी देवता और दानवों के बीच हुए संग्राम से हुई थी।

ऐसे बना रक्षाबंधन भाई बहन का त्योहार

राजा बलि भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे, और बहुत बड़े दानी भी थे। राजा बलि अपने दरबार से कभी किसी को खाली हाथ नही जाने देते थे। राजा बलि ने एक बार यज्ञ का आयोजन किया, यज्ञ के दौरान ही भगवान विष्णु उनके दानवीरता परीक्षा लेने के लिए वामनावतार लेकर धरती पर आए और राजा बलि से दान में तीन पग जमीन मांगा। 

राजा बलि ने उनकी बात मान ली और उन्हें दो पग जमीन नापने को कहा, राजा बलि की बात सुनते ही वामनावतार में आए भगवान विष्णु ने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया। 

इसके बाद राजा बलि समझ गए कि भगवान विष्णु उनकी परीक्षा ले रहे हैं। इसके बाद जब भगवान विष्णु ने उनसे तीसरे पग की जमीन के लिए कहा तो राजा बलि ने तीसरा पग अपने सिर पर रखवा लिया। इसके बाद राजा बलि ने कहा, भगवन अब तो मेरा सबकुछ चला गया है, मेरे पास आपको देने के लिए कुछ भी नहीं बचा। प्रभु आप मेरी विनती स्वीकारें और मेरे साथ पाताल लोक में चलकर रहें। भगवान ने भक्त की बात मान ली और बैकुंठलोक छोड़कर पाताल में रहने चले गए।

भगवान विष्णु के पाताल लोक में जाने से देवी लक्ष्मी व्याकुल हो गईं, और उन्हें वापस बुलाने के लिए एक लीला रची। देवी लक्ष्मी एक गरीब महिला का रूप धारण करके राजा बलि के समझ पहुंचीं, और उनकी कलाई में रेशम का धागा बांधा। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं। राजा बलि की बाते सुनकर देवी लक्ष्मी अपने मूलरूप में आ गईं और बोलीं, कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए। इस पर राजा बलि ने रक्षासूत्र का धर्म निभाते हुए मां लक्ष्मी की मांग को स्वीकार कर लिया और भगवान विष्णु को उन्हें सौंप दिया।

इस तरह देवी लक्ष्मी ने अपने मुंहबोले भाई राजा बलि की कलाई पर राखी बांधकर भगवान विष्णु को मुक्त कराया। इसी दिन से राखी भाई बहन का त्योहार बन गया।

राखी का इतिहास चाहे जो भी हो, परन्तु सत्य यह है कि रक्षाबंधन भाई बहन के अटूट प्यार की मिशाल है। यहां हमने भाई बहन के इसी अटूट रिश्ते से जुड़ी कुछ उद्धरणों का संग्रह बनाया है, जिसके माध्यम से आप एक दूसरे को रक्षाबंधन की शुभकामनाएं भेज सकते है।

खुश किस्मत होती है वो बहने जिनके सर पर भाई का हाथ होता है, लड़ना झगड़ना फिर प्यार से मनाना, तभी तो ये रिश्ता इतना खाश होता है।
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ

राखी कर देती है सारे गिले शिकवे दूर, बहुत ताकतवर होती है ये कच्चे धागों की पावन डोर।
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ

आसमान के सितारों जितनी उमर हो तेरी,
मेरी बहना तुझे किसी की नज़र न लगे, दुनिया की हर खुशी हो तेरी।
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ

भगवान मेरी दुआओं में इतना असर रहें, फूलों से भरा सदा मेरी बहना का घर रहें।
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ

फूलों का तारों का सब का कहना है, एक हज़ारों में मेरी बहना है।
Happy Raksha Bandhan

आज का दिन बहुत खास है मेरी बहना के लिए बहुत कुछ मेरे पास है, तेरी खुशियों की रक्षा के खातिर ओ बहना तेरा भाई हमेशा तेरे साथ है।
रक्षा-बंधन की हार्दिक शुभकामनाएं

मेरी बहना के जैसी कोई बहना नहीं, बिना इसके मुझे कहीं रहना नहीं, जैसे है चांद सितारों में, मेरी बहना है एक हज़ारों में।
Happy Raksha Bandhan

चंदन का टीका, रेशम का धागा, सावन की सुगंध, बारिश की फुहार, भाई की उम्मीद, बहना का प्यार, मुबारक हो आपको "रक्षाबंधन" का त्योहार।
रक्षा-बंधन की हार्दिक शुभकामनाएं

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