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Swami Vivekanand Jivan Parichay — संक्षेप में |
स्वामी विवेकानंद जीवन परिचय, संक्षेप में —
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 ई. को कलकत्ता के एक कुलीन कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे, अपने गुरु से प्रेरित होकर ही उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना, अपने गुरु के नाम पर की थी, जो आज भी भारत तथा अन्य देशों में सुचारू रूप से अपना कार्य कर रही है। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद को वेदान्त का सबसे प्रभावशाली तथा आध्यात्मिक गुरु माना जाता है।
स्वामी विवेकानंद को बचपन से ही साहित्य और दर्शन के क्षेत्र में विशेष रुचि थी। स्वामी विवेकानंद जब 21 वर्ष के थे तब उनके पिता विश्वनाथ दत्त का स्वर्गवास हो गया। पिता की मृत्यु के बाद उन्हें अत्यंत गरीबी और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिसने उनकी अंतरात्मा को पूरी तरह से झकझोर दिया। यही वजह थी कि उम्र के साथ-साथ विवेकानंद के मन में सभी धर्मो तथा समाज की खोखली तथा बेबुनियादी विचारधाराओं के प्रति अविश्वास बढ़ता गया, और आखिकार उन्होंने अध्यात्म को चुना।
अपने सुरूआती दिनों में स्वामी विवेकानंद कुछ समय तक ब्रह्म समाज का भी हिस्सा रहे थे। अपने मन की शांति के लिए वे बहुत से साधु संतो से मिले, और आखिरकार रामकृष्ण परमहंस के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर सन् 1881 ई. में उन्हें अपना गुरु बना लिया।
सामाजिक मोह माया तथा भोग विलास की वस्तुओं को पहले ही त्याग चुके विवेकानंद ने अपने गुरु की मृत्यु के उपरांत 25 वर्ष की अवस्था में गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया। तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की, और अपने गुरु के उद्देश्य तथा कार्यों को आगे बढ़ाने का कार्य किया।
विवेकानंद के व्यक्तित्व पर वेदांत दर्शन, बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग और गीता के कर्मवाद का गहरा प्रभाव था। विवेकानंद मूर्तिपूजा को महत्व नहीं देते थे। लेकिन उन्होंने कभी इसका विरोध भी नही किया। उनके अनुसार 'ईश्वर' निराकार है, ईश्वर सभी तत्वों में निहित है... जगत ईश्वर की ही सृष्टि है। आत्मा का कर्त्तव्य है, कि शरीर रहते ही 'आत्मा के अमरत्व' को जानना। मनुष्य का चरम भाग्य 'अमरता की अनुभूति' ही है। राजयोग ही मोक्ष का मार्ग है।
स्वामी विवेकानंद को मुख्य रूप से 1893 में, शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन से ख्याति प्राप्त हुई। इसके बाद से ही स्वामी विवेकानंद को देश के प्रमुख विचारकों के रूप में प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त हुआ, और उनकी छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभर कर सामने आई।
विवेकानंद की मृत्यु मात्र 39 वर्ष की अवस्था 4 जुलाई 1902 ई. को कलकत्ता के ही बेलूर मठ में हो गई। एक छोटे से जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो उपलब्धियां हासिल की और जो नाम कमाया, उसने उन्हें लोगों के मन में हमेशा-हमेशा के लिए अमर बना दिया।
आपको बता दे, कि सन् 1893 में शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद को उनकी बात रखने के लिए सिर्फ 2 मिनट का समय दिया गया था। किंतु जैसे ही स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो और बहनो" से की, सारा हॉल तालियों की गरगराहट से गूंज उठा..!! उसके बाद विवेकानंद बोलते गए, और लोग सुनते रहे।
शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद द्वारा दिया गया भाषण —
मेरे अमरीकी भाइयों और बहनो...
आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।
मैं इस मंच पर से बोलने वाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया है कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृत— दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है। मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता हैं कि हमने अपने वक्ष में उन यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था। ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने महान जरथुष्ट जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है। भाईयो मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ, जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ, और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं।
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥
अर्थात जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न-भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।
यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक है स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत के प्रति उसकी घोषणा करती है:
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥
अर्थात जो कोई मेरी ओर आता है— चाहे किसी प्रकार से हो, मैं उसको प्राप्त होता हूँ। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।
साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्मान्धता इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं व उसको बारम्बार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को ध्वस्त करती हुई पूरे के पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं। यदि ये वीभत्स दानवी शक्तियाँ न होतीं तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता। पर अब उनका समय आ गया हैं और मैं आन्तरिक रूप से आशा करता हूँ कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घण्टा ध्वनि हुई है वह समस्त धर्मान्धता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होनेवाले सभी उत्पीड़नों का तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होने वाले मानवों की पारस्पारिक कटुता का मृत्यु निनाद सिद्ध हो।
55+ Famous Quotes of Swami Vivekanand || स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार
मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते है..!!
___स्वामी विवेकानंद
उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक तुम्हे तुम्हारा लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये..!!
___स्वामी विवेकानंद
उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को अपने दिमाग से निकाल दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है न कि तुम तत्व के सेवक नहीं हो..!!
___स्वामी विवेकानंद
भला हम भगवान को खोजने कहाँ जा सकते हैं, अगर उसे अपने ह्रदय और हर एक जीवित प्राणी में नहीं देख सकते..!!
___स्वामी विवेकानंद
प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन है, प्रेम जीवन का सिद्धांत है। वह जो प्रेम करता है वही जीता है, वह जो स्वार्थी है मर रहा है। इसलिए प्रेम करो, क्योंकि एक खुशहाल जीवन जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है, वैसे ही जैसे कि जीने के लिए सांस लेना जरूरी है..!!
___स्वामी विवेकानंद
जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरुरी नहीं है, लेकिन रिश्तों में जीवन होना बहुत जरुरी है..!!
___स्वामी विवेकानंद
हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिए कि आप क्या सोचते है। क्योंकि शब्द गौण रहते है मगर विचार जिंदा रहता है और दूर तक यात्रा करता है..!!
___स्वामी विवेकानंद
जिस दिन आपके सामने कोई समस्या न आये — आप यकीन कर सकते है कि आप गलत रास्ते पर सफर कर रहे है..!!
___स्वामी विवेकानंद
सबसे बड़ा धर्म है अपने स्वभाव के प्रति सच्चे होना, और अपने स्वयं पर विश्वास रखना हैं..!!
___स्वामी विवेकानंद
सूरुआत में हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर विरोध होता है, और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है..!!
___स्वामी विवेकानंद
विश्व एक व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते है..!!
___स्वामी विवेकानंद
ब्रह्माण्ड कि सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं वो हम ही है जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं, और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है..!!
___स्वामी विवेकानंद
पढ़ने के लिए एकाग्रता जरूरी है, एकाग्रता के लिए ध्यान जरूरी है, ध्यान से ही हम अपनी इन्द्रियों पर संयम लगा सकते है, और एकाग्रता प्राप्त कर सकते है..!!
___स्वामी विवेकानंद
सच्ची सफलता और आनंद का सबसे बड़ा रहस्य वह पुरुष या स्त्री है जो निस्वार्थ भाव से बिना किसी से कुछ मांगे अपना काम करता है, वहीं सबसे सफल बनता है..!!
___स्वामी विवेकानंद
जब लोग तुम्हें गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो, सोचो… वह तुम्हारी कमीयों को उजागर करके तुम्हारी कितनी मदद कर रहा है..!!
___स्वामी विवेकानंद
एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है..!!
___स्वामी विवेकानंद
जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएँ अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है..!!
___स्वामी विवेकानंद
असल में नास्तिक वो है जिसे स्वयं में विश्वास न हो..!!
___स्वामी विवेकानंद
किसी की निंदा ना करे, ना ही कभी किसी के मार्ग की बाधा बने, अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो जरूर बढ़ाएँ, अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़कर उन्हें आशीर्वाद दीजिए, और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दीजिए..!!
___स्वामी विवेकानंद
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, वह हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं है..!!
___स्वामी विवेकानंद
श्री रामकृष्ण कहा करते थे, जब तक मैं जीवित हूँ तब तक मैं सीखता रहूंगा, वह व्यक्ति जिसके पास सीखने को कुछ नहीं है वह पहले से ही मौत के जबड़े में है..!!
___स्वामी विवेकानंद
धन अगर दूसरों की भलाई करने में काम आये, तभी उसका मूल्य है, अन्यथा वह सिर्फ बुराई का एक ढेर है जिससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना ही बेहतर है..!!
___स्वामी विवेकानंद
तुम्हें अंदर से बाहर की तरफ विकसित होना है, कोई दूसरा तुम्हें नहीं पढ़ा सकता, ना ही कोई दूसरा तुम्हें आध्यात्मिक बना सकता, तुम्हारी आत्मा के अलावा कोई और तुम्हारा गुरु नहीं है..!!
___स्वामी विवेकानंद
जब कोई विचार आपके मस्तिष्क पर पूर्ण रूप से अधिकार कर लेता है, तब वह आपके वास्तविक, भौतिक या मानसिक स्थिति को भी बदल देता है..!!
___स्वामी विवेकानंद
वास्तव में वही जीते हैं, जो दूसरों के लिए जीते हैं..!!
___स्वामी विवेकानंद
कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ भी असंभव है, ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है, अगर आप सोचते है कि आप निर्बल है, तो इससे बड़ा पाप कोई नही..!!
___स्वामी विवेकानंद
स्वयं में बहुत-सी कमियाँ होने के बावजूद यदि मैं स्वयं से प्रेम कर सकता हूँ, तो फिर दूसरों में थोड़ी बहुत कमियों की वजह से उनसे घृणा करना उचित नही है..!!
___स्वामी विवेकानंद
लगातार पवित्र विचार करते रहें, बुरे विचारों को दबाने का यही एक मात्र उपाय है..!!
___स्वामी विवेकानंद
यदि स्वयं में विश्वास किया जाए, स्वयं की कमीयों को दूर करने की दिशा में काम किया जाए, तो यक़ीनन बुराइयों और दुख का एक बहुत बड़ा हिस्सा स्वत: ही गायब हो जाएगा..!!
___स्वामी विवेकानंद
भगवान् की पूजा एक परम प्रिय के रूप में की जानी चाहिए, इस या अगले जीवन की सभी चीजों से बढ़कर..!!
___स्वामी विवेकानंद
धन्य हैं वो लोग जिनका शरीर दूसरों की सेवा के काम आता है..!!
___स्वामी विवेकानंद
यदि परिस्थितियों पर आपकी मजबूत पकड़ है, तो जहर उगलने वाला भी आपकी तारीफ करते नही थकता..!!
___स्वामी विवेकानंद
स्वतंत्र होने का साहस करो, जहाँ तक तुम्हारे विचार जाते हैं वहां तक जाने का साहस करो, और उन्हें अपने जीवन में उतारने का साहस करो, निश्चय ही तुम अपने जीवन को सार्थक बना सकोगे..!!
___स्वामी विवेकानंद
शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से जो कुछ भी तुम्हे कमजोर बनाता है, उसे ज़हर की तरह त्याग दो..!!
___स्वामी विवेकानंद
जो तुम सोचते हो वो हो जाओगे, यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो, तो तुम कमजोर हो जाओगे, अगर तुम खुद को ताकतवर सोचते हो, तो तुम ताकतवर हो जाओगे..!!
___स्वामी विवेकानंद
झुकता वही है जिसमें जान हो, अकड़ना तो मुर्दों की पहचान होती है..!!
___स्वामी विवेकानंद
हमारा कर्तव्य है कि हम हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीवन जीने के संघर्ष में प्रोत्साहन करें, और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लाने के प्रयास में उसकी मदद करें..!!
___स्वामी विवेकानंद
जिस क्षण मैंने यह जान लिया कि भगवान हर एक मानव शरीर रुपी मंदिर में विराजमान हैं, जिस क्षण मैं हर व्यक्ति के सामने श्रद्धा से खड़ा हो गया और उसके भीतर मौजूद भगवान को देखने लगा — उसी क्षण मैं बन्धनों से मुक्त हो गया, हर वो चीज जो बांधती है नष्ट हो गयी, और अब मैं स्वतंत्र हूँ..!!
___स्वामी विवेकानंद
एक विचार लो उस विचार को अपना जीवन बना लो — उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो, यही सफल होने का तरीका है..!!
___स्वामी विवेकानंद
जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते, तब तक आप भागवान पे भी विश्वास नहीं कर सकते..!!
___स्वामी विवेकानंद
किसी मकसद के लिए खड़े हो तो एक पेड़ की तरह, गिरो तो बीज की तरह ताकि दुबारा उगकर उसी मकसद के लिए जंग लड़ सको..!!
___स्वामी विवेकानंद
वेदान्त कोई पाप नहीं जानता, वो केवल त्रुटी जानता है। वेदान्त कहता है कि सबसे बड़ी त्रुटी यह कहना है कि तुम कमजोर हो, तुम पापी हो, एक तुच्छ प्राणी हो, और तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है और तुम ये वो नहीं कर सकते..!!
___स्वामी विवेकानंद
उस व्यक्ति ने अमरतत्व को प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता..!!
___स्वामी विवेकानंद
एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो, और बाकी सब कुछ भूल जाओ..!!
___स्वामी विवेकानंद
हर काम को तीन अवस्थाओं से गुज़रना होता है – उपहास, विरोध और स्वीकृति..!!
___स्वामी विवेकानंद
जितना बड़ा आपका संघर्ष होगा, आपकी जीत भी उतनी ही शानदार होगी..!!
___स्वामी विवेकानंद
स्त्रियो की स्थिति में सुधार ना होने तक विश्व के कल्याण का कोई भी मार्ग नहीं है..!!
___स्वामी विवेकानंद
प्रसन्नता एक अनमोल खजाना है छोटी—छोटी बातों पर उसे लुटने ना दे..!!
___स्वामी विवेकानंद
सच को हजार तरीको से परोसा जाए, फिर वह बदलता नही, सच हमेशा सच ही रहता है..!!
___स्वामी विवेकानंद
जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय उस काम को करना चाहिये, नहीं तो आप पर से लोगो का विश्वास उठ जाता है..!!
___स्वामी विवेकानंद
शक्ति जीवन है निर्बलता मृत्यु है, विस्तार जीवन है संकुचन मृत्यु है, प्रेम जीवन है द्वेष मृत्यु है..!!
___स्वामी विवेकानंद
भगवान से प्रेम का बंधन वास्तव में ऐसा बंधन है, जो आत्मा को बांधता नहीं है, बल्कि उसे सारे बंधनों से मुक्ति दिला देता है..!!
___स्वामी विवेकानंद
मनुष्य की सेवा ही भगवान की सेवा है..!!
___स्वामी विवेकानंद
धर्म ही हमारे राष्ट्र की जीवन शक्ति है। यह शक्ति जब तक सुरक्षित है, तब तक विश्व की कोई भी शक्ति हमारे राष्ट्र को नष्ट नहीं कर सकती..!!
___स्वामी विवेकानंद
मस्तिष्क की शक्तियां सूर्य की किरणों के समान हैं, जब वो केन्द्रित होती हैं, तो आपका भविष्य चमक उठता हैं..!!
___स्वामी विवेकानंद
किसी एक विचार को अपने जीवन का लक्ष्य बनाओ, कुविचारों का त्याग कर दो, केवल उसी विचार के बारे में सोचों, तुम पाओगे कि सफलता तुम्हारे कदम चूम रही है..!!
___स्वामी विवेकानंद
हम सभी को ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है, जिससे चरित्र का निर्माण हो, मन की शक्ति बढ़े, बुद्धि का विकास हो और हम अपने पैरो पर खड़े हो सके..!!
___स्वामी विवेकानंद
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