कबीरदास का दोहा हिंदी अर्थ सहित: Kabir Ke Dohe With Meaning in Hindi Language

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कबीर दास के दोहे


प्रेम-प्रेम सब कोई कहै, प्रेम ना चिन्है कोई
जा मारग हरि जी मिलै, प्रेम कहाये सोई..!!


अर्थ :

सभी लोग प्रेम-प्रेम बोलते और कहते हैं, परंतु प्रेम के वास्तविक अर्थ को कोई नहीं जानता है।
जिस मार्ग पर प्रभु का दर्शन हो जाये, वास्तव में वही प्रेम का सही मार्ग है।




साजन सनेही बहुत हैं, सुख मे मिलै अनेक
बिपति परै दुख बाटिये, सो लाखन मे ऐक..!!


अर्थ :

कबीर के अनुसार सुख मे अनेक सज्जन एंव स्नेही मिलते हैं, परन्तु विपत्ति में दुख वाटने वाला लाखों मे एक ही मिलते हैं।




पीया चाहै प्रेम रस, राखा चाहै मान
दोय खड्ग ऐक म्यान मे, देखा सुना ना कान।


अर्थ :

या तो आप प्रेम रस का पान करें या अहंकार को रखें, दोनों को एक साथ रखना संभव नहीं है।
एक म्यान में दो तलवार रखने की बात न तो देखी गई है और ना ही सुनी गई है।




प्रीति बहुत संसार मे, नाना बिधि की सोय
उत्तम प्रीति सो जानिय, राम नाम से जो होय..!!


अर्थ :

संसार में अनेक प्रकार के प्रेम होते हैं, बहुत सारी चीजों से प्रेम किया जाता है।
परन्तु सर्वोत्तम प्रेम वही है जो राम के नाम से किया जाये।




प्रेम ना बारी उपजै, प्रेम ना हाट बिकाय
राजा प्रजा जेहि रुचै, शीश देयी ले जाय..!!


अर्थ :

प्रेम ना तो किसी खेत में पैदा होता है, और न हीं किसी बाजार में बिकता है।
राजा हो प्रजा जो भी प्रेम के इच्छुक हो, वह अपने घमंड का त्याग कर प्रेम को प्राप्त कर सकता है।




प्रेम पियाला सो पिये, शीश दक्षिना देय
लोभी शीश ना दे सके, नाम प्रेम का लेय..!!


अर्थ :

प्रेम का प्याला केवल वही पी सकता है, जो अपने सिर का वलिदान करने को तत्पर हो।
एक लोभी-लालची अपने सिर का वलिदान कभी नहीं दे सकता, भले ही वह कितना भी प्रेम-प्रेम चिल्लाता हो।




काल हमारे संग है, कश जीवन की आस
दस दिन नाम संभार ले, जब लगि पिंजर सांश..!!


अर्थ :

इस दोहे में कबीर कहते है कि मृत्यु सदा हमारे आस पास ही रहता है, इसलिए इस जीवन की कोई आस लेकर मत चलिए।
और कम से कम दस दिन तो प्रभु का नाम सुमिरन करलो, जब तक कि इस शरीर में सांस बचा है।




कबीर सब सुख राम है, और ही दुख की राशि
सु, नर, मुनि, जन,असुर, सुर, परे काल की फांसी..!!


अर्थ :

इस दोहे में कबीर बतलाते है कि केवल प्रभु ही समस्त सुख देने वाले है, अन्य सभी दुखों के भंडार है।
देवता, आदमी, साधु, राक्षस सभी मृत्यु के फांस में पड़े है, मृत्यु किसी को नहीं छोड़ता।




कबीर हरि सो हेत कर, कोरै चित ना लाये
बंधियो बारि खटीक के, ता पशु केतिक आये..!!


अर्थ :

उपरोक्त दोहे में कबीर कहते है कि अपने चित्त में कूड़ा कचड़ा भड़ने से बेहतर है प्रभु से प्रेम करो।
क्योंकि जब एक पशु कसाई के द्वार पर बांध दिया गया है, सोचो उसकी आयु कितनी शेष बची है।




कबीर गाफील क्यों फिरय, क्या सोता घनघोर,
तेरे सिराने जाम खड़ा, ज्यों अंधियारे चोर..!!


अर्थ :

उपरोक्त दोहे में कबीर कह रहे है कि हे मनुष्य तुम भ्रम में क्यों भटक रहे हो?तुम गहरी नीन्द में क्यों सो रहे हो? तुम्हारे सिरहाने में मौत खड़ी है, ठीक वैसे ही जैसे अंधेरे में चोर छिपा रहता है।




कबीर जीवन कुछ नहीं, खिन खारा खिन मीठ,
कलहि अलहजा मारिया, आज मसाना ठीठ..!!


अर्थ :

उपरोक्त दोहे में कबीर लोगों को नियति की कठोर सच्चाई से अवगत कराना चाहते है, और यह समझाना चाहते है कि यह जीवन कुछ नहीं है, सबकुछ क्षणिक है। अगर जीवन इस क्षण मे खारा है तो वह अगले ही क्षण मीठा भी हो सकता है। जो योद्धा वीर कल तक सबको मार रहा था, आज वह स्वयं श्मसान में मरा पड़ा है।




कबीर टुक टुक देखता, पल पल गयी बिहाये
जीव जनजालय परि रहा, दिया दमामा आये..!!


अर्थ :

उपरोक्त दोहे में कबीर लोगों को यह बताना चाहते है कि इस संसार में सबका समय सीमित है। आप टुकुर-टुकुर देखते रहते है और आपका जीवन क्षण-क्षण बीतता चला जाता है।
आप मोह माया के जंजाल में पड़े रहते है, और उधर काल कूच करने के लिये नगारा पीट देता है।




कबीर पगरा दूर है, आये पहुचै सांझ
जन-जन को मन राखती, वेश्या रहि गयी बांझ..!!


अर्थ :

प्रस्तुत दोहे में कबीर कहते है, कि मुक्ति बहुत दूर है और जीवन की संध्या आ चुकी है। एक वेश्या जो सबका मन पूरा कर देती है, वह स्वयं बांझ ही रह जाती है।




कागा काय छिपाय के, कियो हंस का भेश
चलो हंस घर आपने, लेहु धनी का देश..!!


अर्थ :

कौये ने अपने शरीर को छिपा कर हंस का वेश धारण कर लिया है। ऐ हंसो-अपने घर चलो, परमात्मा के स्थान का शरण लो, वही तुम्हारा मोक्ष होगा।




काल छिछाना है खड़ा, जग पियारे मीत
राम सनेही बाहिरा, क्यों सोबय निहचिंत।


अर्थ :

मृत्यु रुपी बाज तुम पर झपटने के लिये खड़ा है, जागो प्यारे मित्रों। परम प्रिय स्नेही भगवान बाहर है, तुम क्यों निश्चिंत सोये हो।




काल जीव को ग्रासै, बहुत कहयो समुझाये
कहै कबीर मैं क्या करुॅ, कोयी नहीं पतियाये..!!


अर्थ :

मृत्यु जीव को ग्रस लेता है, खा जाता है। यह बात मैंने बहुत समझाकर कही है।लेकिन अब मैं क्या करु, कोई भी मेरी बात पर विश्वास नहीं करता है।





काल-काल सब कोई कहै, काल ना चिन्है कोयी
जेती मन की कल्पना, काल कहाबै सोयी..!!


अर्थ :

इस दोहे में कबीर यह बताते है, कि मृत्यु-मृत्यु सब कोई कहता है मगर इस मृत्यु को कोई नहीं पहचानता है। जिसके मन में मृत्यु के बारे में जैसी कल्पना है वही मृत्यु कहलाता है।




कुशल-कुशल जो पूछता, जग मे रहा ना कोये
जरा मुअई ना भय मुआ, कुशल कहाॅ ते होये..!!


अर्थ :

हमेशा एक दूसरे से कुशल-कुशल पूछने वाले लोगों से कबीर कहते है, कि जब संसार में कोई नहीं रहेगा तो कैसा कुशल। बुढ़ापा नहीं मरा, न भय मरा, तो कुशल कहां से कैसे होगा।




कुशल जो पूछो असल की, आशा लागी होये
नाम बिहुना जग मुआ, कुशल कहाॅ ते होये।


अर्थ :

इस दोहे में कबीर कहते है कि यदि तुम वास्तव में कुशल पूछते हो तो मन में एक आशा जागती है, मगर जब तक संसार में आशक्ति है, प्रभु के नाम सुमिरण और भक्ति के बिना कुशल कैसे संभव है।




काल पाये जग उपजो, काल पाये सब जाये
काल पाये सब बिनसि है, काल-काल कंह खाये..!!


अर्थ :

अपने समय पर सृष्टि की उत्पत्ति होती है, अपने समय पर सब का अंत हो जाता है। समय आने पर सभी जीचों का विनाश हो जाता है, और लोग समझते है कि काल खा जाता है।




काल फिरै सिर उपरै, हाथौं धरी कमान
कहै कबीर गहु नाम को, छोर सकल अभिमान।


अर्थ :

मृत्यु हाथों में तीर धनुष लेकर सबों के सिर पर चक्कर लगा रही है। समस्त घमंड अभिमान छोड़ कर प्रभु के नाम को पकड़ो, उन्हें ग्रहण करो, तभी तुम्हारी मुक्ति होगी।




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